ईद मुबारक शायरी Eid Mubarak Shayari
मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं ❤️
mil ke hotee thee kabhee eed bhee deevaalee bhee
ab ye haalat hai ki dar dar ke gale milate hain.
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए.
❤️
aap idhar aae udhar deen aur eemaan gae
eed ka chaand nazar aaya to ramazaan gae
ज़माने भर की रौनक से हमें क्या वास्ता ग़ालिब,
हमारा चाँद दिख जाए हमारी ईद हो जाये !! ❤️
zamaane bhar kee raunak se hamen kya vaasta gaalib,
hamaara chaand dikh jae hamaaree eed ho jaaye
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में,
वो दिल में आ के अदा तेरे मुस्कुराने की !
❤️
vo subh-e-eed ka manzar tire tasavvur mein,
vo dil mein aa ke ada tere muskuraane kee
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है❤️
eed ka din hai gale aaj to mil le zaalim
rasm-e-duniya bhee hai mauqa bhee hai dastoor bhee hai
उठा दो दोस्तो इस दुश्मनी को महफ़िल से
शिकायतों के भुलाने को ईद आई है !❤️
utha do dosto is dushmanee ko mahafil se
shikaayaton ke bhulaane ko eed aaee hai.
माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़
शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी !!❤️
maah-e-nau dekhane tum chhat pe na jaana haragiz
shahar mein eed kee taareekh badal jaegee
ईद का चाँद तुमने देख लिया
चाँद की ईद हो गयी ❤️
eed ka chaand tumane dekh liya
Two Line Shayari On Eid | 2 Line Eid Mubarak Shayari | 2 Line Eid Shayari In Hindi
बादल से बादल मिलते है तो बारिश होती है
दोस्त से दोस्त मिलते है तो ईद होती है
ना हाथ दिया, न गले मिले, ना कुछ बात हुई
अब तुम ही बताओ ऐ साजन ये क़यामत हुई के ईद हुई
वैसे तो न हीं मिलते, चलो कर ले बहाना
सीने से लग के मेरे कहो ईद मुबारक
तुझे याद करते है तो ईद मना लेते है
हम ने अपने लिए त्यौहार अलग रखा है
तेरे कहने पे लगायी है यह मेहँदी मैंने
ईद पर अब न तू आया तो क़यामत होगी
कितनी मुश्किलों से फलक पर नज़र आता है
ईद के चाँद का अंदाज़ तुम्हारे जैसा है
देखा ईद का चाँद तो मांगी ये दुआ रब से
देदे तेरा साथ ईद का तोहफा समझ कर
गरीब माँ अपने बच्चों को बड़े प्यार से यूँ मनाती है
फिर बना लेंगे नए कपडे यह ईद तो हर साल आती है
बाकी दिनों का हिसाब रहने दो
ये बताओं ईद पे तो मिलने आओगे ना
कोई कह दे उनसे जाकर की छत पे ना जाए
बेवजह शहर में ईद की तारीख बदल जाएगी
साहिब-ए-अक़ल हो आप, एक मसला तो बताओं
मैंने रुख-ए-यार नहीं देखा क्या मेरी ईद हो गई
मेरी तमन्ना तो ना थी तेरे बगैर ईद मनाने की
मगर, मजबूर को मजबूरियां, मजबूर कर देती है
तुझसे बिछड़े तो अब होश नहीं
कब चाँद हुआ कब ईद हुई
चाँद निकला तो मैं लोगों से लिपट लिपट कर रोया
ग़म के आंसू थे जो खुशियों के बहाने निकले
इतने मजबूर थे ईद के रोज़ तक़दीर से हम
रो पड़े मिलके गले आपकी तस्वीर से हम
उधर से चाँद तुम देखो, इधर से चाँद हम देखे
निगाहें इस तरह टकराएं की दो दिलों की ईद हो जाएँ
ना किसी का दीदार हुआ, ना किसी के गले मिले
कैसी खामोश ईद थी, जो आई और चली गई
मासूम से अरमानो की मासूम सी दुनिया
जो कर गए बर्बाद उन्हें ईद मुबारक
तुझे मेरी ना मुझे तेरी खबर जाएगी
ईद अब के बार दबे पाँव गुजर जाएगी
बता कौनसे मौसम में उम्मीद-ए-वफ़ा रखे
तुझ को जो ईद के दिन भी हम याद नहीं आये
हमने तुम्हें देखा ही नहीं तो क्या ईद मनाएं
जिस ने तुम्हें देखा उसे ईद मुबारक
कोई टिप्पणी नहीं